रीवा। एक ओर जहां आगामी 25
दिसंबर को देश के गृहमंत्री अमित शाह के प्रस्तावित रीवा दौरे को लेकर
शासन-प्रशासन युद्धस्तर पर तैयारियों में जुटा है, वहीं दूसरी ओर
संभाग के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल से आई एक चौंकाने वाली और शर्मनाक हकीकत ने
पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी है।
संजय गांधी स्मारक चिकित्सालय के इकलौते ब्लड
बैंक में पिछले लगभग एक महीने से रक्त की उपलब्धता पूरी तरह शून्य है। यह स्थिति
तब है, जब यह अस्पताल पूरे विंध्य संभाग के गंभीर मरीजों की अंतिम उम्मीद
माना जाता है।
>मरीजों के परिजन दर-दर भटकने को मजबूर
ब्लड बैंक खाली होने का सीधा खामियाजा आम मरीज
और उनके परिजन भुगत रहे हैं। संजय गांधी स्मारक चिकित्सालय और गांधी स्मारक
चिकित्सालय में भर्ती मरीजों के परिजनों को मजबूरी में निजी ब्लड बैंकों या दूसरे
जिलों की दौड़ लगानी पड़ रही है । कई मामलों में उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ रहा है, जिससे
इलाज में देरी और जान का खतरा बढ़ता जा रहा है।
>वीवीआईपी दौरों में भी नहीं सुधरी व्यवस्था
हैरानी की बात यह है कि यह कोई पहली घटना नहीं
है। हाल ही में जब प्रदेश के राज्यपाल मंगूभाई पटेल अवधेश प्रताप सिंह
विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में रीवा आए थे, तब भी संभागीय
अस्पताल के ब्लड बैंक में रक्त उपलब्ध नहीं था।
अब गृहमंत्री अमित शाह के प्रस्तावित दौरे से
ठीक पहले फिर वही स्थिति सामने आना प्रशासनिक लापरवाही और स्वास्थ्य प्रबंधन की
गंभीर विफलता को उजागर करता है।
>ब्लड डोनेशन के बाद भी खाली हुआ बैंक
जानकारी के अनुसार कुछ समय पहले एक निजी संस्था
द्वारा ब्लड डोनेशन कैंप आयोजित कर बड़ी मात्रा में रक्त संग्रह किया गया था,
जिसे
जिला चिकित्सालय और संजय गांधी अस्पताल को सौंपा गया। इसके बाद अस्पताल प्रबंधन
द्वारा रक्त का वितरण किया गया और नतीजा यह हुआ कि ब्लड बैंक पूरी तरह खाली हो गया,
लेकिन
दोबारा रक्त संग्रह की कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई।
>प्रोटोकॉल के नाम पर आम मरीज उपेक्षित
इस पूरे मामले पर अस्पताल अधीक्षक डॉ. राहुल
मिश्रा का कहना है कि एनजीओ से प्राप्त रक्त को प्रोटोकॉल के तहत थैलेसीमिया,
कैंसर
और सिकल सेल जैसी गंभीर बीमारियों से पीड़ित मरीजों को उपलब्ध कराया गया, जिससे
स्टॉक समाप्त हो गया। साथ ही वीवीआईपी मूवमेंट को लेकर आवश्यक व्यवस्थाएं
सुनिश्चित करने की बात कही जा रही है।लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि आम मरीज और उनके
परिजन आज भी रक्त के लिए भटक रहे हैं। सवाल यह है कि क्या सरकारी स्वास्थ्य
व्यवस्था केवल वीवीआईपी प्रोटोकॉल तक सीमित रह गई है?
क्या आम नागरिकों की जान की कीमत केवल आयोजनों
और दौरों से कम आंकी जा रही है? ब्लड बैंक जैसी मूलभूत सुविधा का महीनों तक ठप
रहना स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है ! और यह साबित करता है
कि जमीनी स्तर पर हालात कितने बदहाल हैं।
Post a Comment